शुक्रवार, 6 मार्च 2009

क्या वर्तमान हिन्दू जाति व्यवस्था का कोई प्रमाणित शास्त्रीय आधार है?

आज कल ये बहुत अधिक प्रचारित है कि आज हिन्दू जाति व्यवस्था का उदगम हमारे शास्त्रों द्वारा वर्णित वर्ण व्यवस्था है और भीम राव अम्बेडकर ने यहाँ तक कहा था की यदि इस हिन्दू जाति व्यवस्था से मुक्ति पानी है तो वेद शास्त्रों को डायनामाईट से उड़ा दो और वो स्वयं भी इस जाति व्यवस्था के विरोद्ध में बोद्ध मत में आ गया था और ये भी उसने कहा कि हिन्दू इस विश्व में सबसे संकीर्ण बुद्धि का प्राणी है जो अपने इन शास्त्रों के विरुद्ध एक शब्द नहीं बोल सकता है और इन्ही की बेडियों में जकडा रहता है। इन बातो के अलावा विशेष कर मनु-स्मृति आदि ग्रंथो का उसने प्रबल विरोद्ध किया। मैंने एक पुस्तक में अम्बेडकर के द्वारा दिए एक भाषण को पढ़ा और उस भाषण में उसने कई मंत्रों विशेषकर मनुस्मृति से उद्धृत मंत्रों का उदाहरण भी दे रखा था। अब मैं कुछ बात रखना चाहता हूँ की उस भाषण को पढ़ने के पश्चात ऐसा आभास होता है की अम्बेडकर ने कोई शास्त्र नहीं पढ़े थे यदि पढ़े थे तो किन्ही स्वयम घोषित विद्वानों के द्वारा अप्रमाणित मंत्रों के पढ़े थे या फिर अंग्रेजी लेखकों द्वारा इंग्लिश अनुवाद पढ़े होंगे। क्युकी अम्बेडकर का सारा लेखन इंग्लिश में ही है तो ये ही लगता है कि उसने इंग्लिश लेखको द्वारा कि हुई अनुवादित पुस्तकें ही पढ़ी होंगी इसका मतलब ये नहीं कि इंग्लिश लेखको द्वारा अनुवादित सारी पुस्तकें अच्छी नहीं हैं पर अधिकतर त्रुटिपूर्ण ही मिलती हैं।
आधुनिक जाति व्यवस्था अत्यधिक् त्रुटिपूर्ण है वरन ये जाति व्यवस्था नहीं एक साम्राज्यवाद है इस बात से मैं भी सहमत हूँ।वेदों में वर्णित वर्ण व्यवस्था या वर्ग व्यवस्था इस सम्पूर्ण विश्व में मनुष्यों को ४ प्रकार की श्रेणी में वर्गीकृत करती है मतलब की इस समस्त विश्व में ४ प्रकार के मानव होते हैं।प्रथम ऐसे मानव जो ज्ञान से वंचित होते हैं और श्रमिक का कार्य करते हैं जैसे की आज कल का मजदूर वर्ग, द्वितीय ऐसे मानव जो व्यापार और उसके उत्थान आदि के लिए कार्य करते हैं जैसे आज कल के सभी व्यापारी, इन्जीनीअर्स, डाक्टर और सभी बोद्धिक कार्यो वाले नौकरीपेशा, तृतीय ऐसे मनुष्य जो लोगो की रक्षा, नेतृत्व और न्याय आदि करते हैं जैसे सेना, नेता, प्रशासक गण आदि और चतुर्थ वो जो ज्ञानी होते हैं जिनके लिए धन की महत्ता भी कुछ नहीं होती, आत्म-साक्षात्कार, ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करते हैं और लोगो को मानव कल्याण, विज्ञान, गणित और अध्यात्म आदि की वेदानुरूप शिक्षा देकर विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं और सभी वर्गों के सम्मानीय होते हैं जोकि आज लगभग समाप्त हो चुके हैं। इनको क्रम से शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राहमण की संज्ञा दी गयी है। मनुष्य के कर्म बताते हैं की वो किस वर्ग या श्रेणी में आता हैं मतलब की शूद्र का पुत्र ब्रह्मण या शेष सभी किसी भी वर्ग का हो सकता है ऐसे ही ब्रह्मण का पुत्र भी शूद्र आदि किसी भी वर्ण का हो सकता है और शेष भी इसी तरह से जानने चाहियें। मेरी समझ में ये नहीं आता है इसमें आज की जाति व्यवस्था कहाँ है मनुष्य इन्ही ४ प्रकारों में से एक होता है चाहे वो किसी भी देश का हो और इसमें कोई कानूनी या सामाजिक वर्गीकरण करने कि आवश्यकता नहीं होती ये तो प्राकृतिक ही होता है। आज कल मंदिरों में झाडू-पोछा आदि करने वाले शूद्र लोग ब्रह्मण बन बैठें हैं, शूद्र एवं वैश्य लोग क्षत्रिय का कार्य कर रहे हैं और यदि वो इस योग्य होते तब तो वो क्षत्रिय ही कहलाते मैं उनको शूद्र और वैश्य इसलिए कह रहा हूँ क्युकी वो मुर्ख राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त और धन कमाने में ही लगे रहते हैं देश जाये भाड़ में, क्षत्रिय या तो बहुत कम हैं या शांत बैठ कर ये तमाशा देख रहे हैं और ब्रह्मण तो लगभग समाप्त ही हो चुके हैं। आज कल के जन्म आधारित स्वः घोषित ब्रह्मण , क्षत्रिय आदि वास्तव में उस वर्ग के नहीं है और यदि वो हैं तो अपने कर्म से सिद्ध करें न कि गोत्र से। आज भी सरकारें लोगो को पृथक-पृथक वर्गों में रखती हैं किन्तु उनका पृथक्कीकरण मुख्यतः धन और बल पर आधारित होता है उदाहरण के तौर पर आजकल के बुद्दिजीवियों में फिल्म कलाकार, व्यापारी, ढोंगी सेकुलर समाजकर्ता, नेता, मुल्ला मौलवी, मीडिया कर्ता आदि लोगो को ही लिया जाता है जो कि न्याय संगत नहीं है, दूसरे देश द्रोहियों, गुंडों बदमाशो को बाहुबली कि संज्ञा दी जाती है और भी निम्न वर्ग,मध्यम वर्ग, उच् वर्ग आदि संज्ञा से इसी प्रकार से आज के बुद्दिजीवी प्रबुद्ध लोग समाज का वर्गीकरण करते हैं।

मनु स्मृति या किसी भी आर्ष ग्रन्थ में आज की जाति व्यवस्था नहीं लिखी और न ही छुआ-छूत को मान्यता दी यदि कोई ऐसा कहता है तो वो १०० प्रतिशत उसमें बाद में जोड़ा गया है मनु या अन्य किसी भी महापुरुष ने ऐसा नहीं लिखा। महाभारत के पश्चात वास्तविक कर्म आधारित ब्रह्मण विद्वानों की कमी के कारण और देश की राजनीतिक व्यवस्था के बिगड़ जाने पर जिसके मन में जो आया वो ऋषियों के नाम पर लिखा जैसे कहते हैं महर्षि व्यास ने सभी पुराणों की रचना की, वाम मर्गियों ने कहा शास्त्रों में यज्ञों में बलि, मदिरापान, उल्टे-सीधे योन-संबंद्ध आदि घिनोने कार्य लिखे हैं, इन्द्र किसी ऋषि पत्नी के साथ ऋषि की अनुपस्थिति में व्यभिचार किया करता था और ऋषि श्राप के कारण वो पत्थर बन गई और भी पता नहीं क्या-क्या बकवासबाजी लिखी, प्रमाणित उपनिषद हैं तो १० या १३ किन्तु अब १०८ और उससे अधिक बताते हैं जिनमें वास्तविक उपनिषदों को छोड़ कर अन्य में साम्प्रदायिकता भरी हुई है। आज अधिकतर वैदिक ग्रंथों में प्रक्षिप्त श्लोक मिल जायेंगे किन्तु जो प्रमाणिक हैं उनमें कोई भी बात न्याय विरुद्ध नहीं मिलेगी। उन प्रक्षिप्त श्लोकों के आधार पर लोग वैदिक शास्त्रों की बुराई करने लगते हैं और हिन्दू समाज को विभिन्न सम्प्रदायों में विभाजित करने का कार्य करते हैं। वेदों में वर्ण व्यवस्था विज्ञान सम्मत है और उसको कोई माने या न माने किन्तु प्रत्येक मनुष्य उन ४ वर्गों में से ही एक होता है। जाति शब्द वेदों या प्रमाणित शास्त्रों में इस तरह से आया है मनुष्य जाति, अश्व जाति, मार्जार जाति, वानर जाति आदि और इन विभिन्न जातियों में विवाह निषेध है तो इसमें गलत क्या है। आज इसका स्वरुप स्वार्थी, प्रमादी और मुर्ख लोगो द्वारा कुछ का कुछ कर दिया है। छुआ-छूत का जहर पूरे समाज में फैला दिया है जिसके कारण देश को सैकड़ो वर्षो से बहुत अधिक हानि हो रही है। आज इसी कारण ऐसे लोग राज कर रहे हैं जिसकी किसी राष्ट्रभक्त को पूर्व में कल्पना भी नहीं होगी और देश विखंडन की और अग्रसर है।
अम्बेडकर ने अपने भाषण में मनुस्मृति के जिन श्लोको का वर्णन किया है वो अधिकतर प्रक्षिप्त श्लोक थे या कुछ का गलत सन्दर्भ में अर्थ पेश किया गया था। वास्तव में अम्बेडकर की भी इतनी गलती नहीं है जितनी जन्म आधारित और स्वः घोषित ब्रह्मणों की जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए सब कुछ सत्यानाश कर दिया और उन्ही के सताए हुए लोगो में से एक अम्बेडकर भी था वैसे वो एक राष्ट्र भक्त ही था जैसा की उसकी और बातों से लगता है । इस बात का फायदा हमेशा राष्ट्रविरोधी शक्तियों ने लिया है और आगे भी लेते रहेंगे जब तक हिन्दू अपनी कपोल-कल्पित जातियों में खंडित रहेगा। उदाहरण के तौर पर आरक्षण एक ऐसा ही राष्ट्रविरोधी लोगो द्वारा फेंका ऐसा दानव है जो हिन्दुओं को निगलता ही जा रहा है। इतनी बर्बादी होने के बाद भी हिन्दू नहीं सुधरे तो निश्चित इस सनातन धर्म की पावन गंगा का सूख जाना निश्चित है। सन १९३० में प्रसिद्द समकालीन अमेरिकी इतिहासकार विल ड्यूरेंट ने एक पुस्तक लिखी थी जिसमें उसने उसने भारत की वर्तमान अवस्था पर कटाक्ष करते हुए टिप्पणी की थी की " वर्तमान में भारत की जाति व्यवस्था ४ भागो में विभाजित है ब्रह्मण अर्थात अंग्रेज नौकरशाही, क्षत्रिय अर्थात अंग्रेज सेना, वैश्य अर्थात अंग्रेज व्यपारी और अछूत शूद्र अर्थात हिन्दू जनता" इस पुस्तक में और भी अंग्रेजो की मक्कारियों का चिटठा खोला था और इसको अंग्रेजो ने प्रतिबंधित कर दिया था. मेरा यहाँ इस बात का उदाहरण देने का तात्पर्य केवल इतना है की आज हिन्दू या तो जातियों या गुटों में विभक्त है या फिर विल ड्यूरेंट द्वारा किये हुए वर्गीकरण पर आधारित है अंतर बस इतना है की "ब्रह्मण अर्थात अंग्रेजी नौकरशाही, क्षत्रिय अर्थात अंग्रेजी सेना, वैश्य अर्थात अंग्रेजी व्यपारी और अछूत शूद्र अर्थात राष्ट्रभक्त हिन्दू जनता".