गुरुवार, 17 अप्रैल 2008
क्या भारत वर्ष या आर्याव्रत हमारा देश नहीं है (क्या हम विदेशी हैं )
अब जरा एक बात अपनी बुद्दी से और अनुसंधान करके सोच कर बताओ जो सब कुछ वेदों में लिखा है और जो भी कुछ हमारे रीती रिवाज़ हैं और जो हमारी जीवन दर्शन का सिद्धांत है वो इस विश्व में कही भी नही है अगर आर्य बाहर से मध्य से आते तो उनके वहाँ भी तो तो कुछ प्रमाण होने चाहिए जबकि हमारी संस्कृति और उनमें धरती-आसमान का अन्तर दिखाई देता है। शायद मेरी बात को आप में से कुछ लोग स्वीकार नही करेंगे तो मैं यहाँ उनके लिये कुछ ब्रिटेनिका एनसाईक्लोपीडिया से लिये गए बातो को लिख रहा हूँ ।
१) आर्यों में कोई गुलाम बनाने का कोई रिवाज़ नही था।
समीक्षा - जबकि मध्य एशिया अरब देशो में ये रिवाज़ बहुत रहा है।
२) आर्य प्रारम्भ से ही कृषि करके शाकाहार भोजन ग्रहण करते आ रहें है।
समीक्षा - मध्य एशिया में मासांहार का बहुत सेवन होता है जबकि भारत में अधिकतम सभी आर्य या हिंदू लोग शाकाहारी हैं३) आर्यों ने किसी देश पर आक्रमण नहीं किया
समीक्षा- अधिकतम अपनी सुरक्षा के लिये किया है या फ़िर अधर्मियो और राक्षसों (बुरे लोगो) का संहार करने के लिये और लोगो को अन्याय से बचाने के लिये और शिक्षित करने के लिये किया है। इतिहास साक्षी है अरब देशो ने कितने आक्रमण और लौट-खसोट अकारण ही मचाई है।
४) आर्यों में कभी परदा प्रथा नही रही बल्कि वैदिक काल में स्त्रियाँ स्नातक और भी पढी लिखी होती थी उनका आर्य समाज में अपना काफी आदर्श और उच् स्थान था ( मुगलों के आक्रमण के साथ भारत के काले युग में इसका प्रसार हुआ था) समीक्षा- जबकि उस समय मध्य एशिया या विश्व के किसी भी देश में स्त्रियों को इतना सम्मान प्राप्त नही था।
५)आर्य लोग शवो का दाह संस्कार या जलाते हैं जबकि विश्व में और बाकी सभी और तरीका अपनाते हैं।
समीक्षा - ना की केवल मध्य एशिया में वरन पूरे विश्व में भारतीयों के अलावा आज भी शवो को जलाया नही जाता।
६) आर्यों की भाषा लिपि बाएं से दायें की ओर है।
समीक्षा - जबकि मध्य एशिया और इरानियो की लिपि दायें से बाईं ओरहै
७)आर्यों के अपने लोकतांत्रिक गाँव होते थे कोई राजा मध्य एशिया या मंगोलियो की तरह से नही होता था।
समीक्षा - मध्य एशिया में उस समय इन सब बातो का पता या अनुमान भी नही था
८)आर्यों का कोई अपना संकीर्ण सिद्दांत या कानून नही था वरन उनका एक वैश्विक अध्यात्मिक सिद्दांत रहा है जैसे की अहिंसा, सम्पूर्ण विश्व को परिवार की तरह मानना। समीक्षा -मध्य एशिया या शेष विश्व में ऐसा कोई सिद्दांत या अवधारणा नही है।
९)वैदिक या सनातन धर्म को कोई प्रवर्तक या बनाने वाला नहीं है जैसे की मोहम्मद मुस्लिमों का, अब्राहम ज्युष का या क्राईस्ट क्रिश्चियन का और भी सब इसी तरीको से।
समीक्षा - मध्य एशिया या शेष विश्व में भारतीयों या हिन्दुओं के अतिरिक्त सभी के अपने मत हैं और सभी में और मतों की बुराई और अपनी तारीफ़ लिखी गई है जबकि हिन्दुओं या आर्यों ने हमेशा समस्त विश्व को साथ लेकर चलने की बात कही गई है।
१०) वेदों में या किसी भी संस्कृत साहित्य में कहीं भी ये वर्णन नहीं है की आर्य जाती सूचक शब्द है और कोई मध्य एशिया से आक्रमणकारी यहाँ आ कर बसे हैं जिन्होंने वेदों की रचना की है।
समीक्षा -जबकि इस बात को विश्व में सभी सर्वसहमति से स्वीकारते हैं की वेद विश्व की सबसे पुराने ग्रन्थ हैंऔर किसी भी भारतीय उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत या अन्य किसी में भी कहीं भी ये एक शब्द भी नही मिलता की आर्य बाहर से आए हैं जबकि आर्य कोई जातिसूचक शब्द ना हो कर के उसका अर्थ श्रेष्ट है।
अब विचार करने योग्य ये है ये सभी बातें भारतीयों या हिन्दुओं के अलावा विश्व में कहीं और क्यों नही पाई जाती यदि हम आक्रमणकारी थे तो हमारे सिद्दांत या रीती रिवाज़, समाज या अन्य धार्मिक क्रिया-कलाप किसी और विश्व की सभ्यता में क्यों नही पाए जाते अगर वास्तव में हम आक्रमणकारी हैं तो हमारी मूल स्थान कहीं तो होगा जैसे की अधिकतर लोगो का मानना मध्य एशिया हमारा मूल स्थान है उनमें क्या एक भी गुण हम आर्यों के सिद्दान्तो या जीवनदर्शन से मिलता है बल्कि मूल स्थान पर ये गुण अधिक पाये जाने चाहिए थे। हम इस विश्व में शेष विश्व से अपनी एक अलग पहचान रखते हैं और ऐसे हजारों तथ्य हैं जो इस बात को सिद्ध करते हैं हम भारतीय मानव के जन्म काल से भारतवासी हैं। मेरे विचार से इससे बड़ी हास्यास्पद और विकट समस्या भारतीयों के लिये हो नहीं सकती अगर वो अपने को इस देश का मूल निवासी नही मानते। क्युकी इससे राष्ट्रभक्ति और स्वाभिमान पर सीधा आघात होता है जैसा की ब्रिटिश चाहते ही थे और इनके उद्देश्य को पूर्ण करने में पिछले १५० सालो से हमारे नेताओं ने जोकि अधिकतर भारतीयों की खाल में वेदेशी घुसे हुए हैं ने कोई कमी नही छोडी है जिससे आजकल की पीडी अपने राष्ट्र और संस्कृति से भी कटने लगी है। खैर देखते और आशा भी करते है भारत अपने इस काले युग से बाहर निकल कर फ़िर से अपने पैरो पर खड़ा हो कर के चलेगा किसी दिन।
धन्यवाद एवं शुभ कामनाओं सहित,
आपका मित्र सौरभ आत्रेय
मंगलवार, 15 अप्रैल 2008
क्या हम हिन्दी नहीं बोलते
मित्रो एक बार की बात है मेरी एक भारतीय से ये बैहस हुई कि भारतीय हिन्दी नहीं बोलते अब आप लोगो को सुन कर मेरा मतलब पढ़ कर बड़ा अजीब लगा होगा पर ऐसा ही कि कुछ मूर्ख लोग समझते हैं। अब उनका तर्क सुनिए उसने मुझ से हिन्दी में ही बोल कर कहा की आप इसको हिन्दी में बोलिए "भाईसाब दिल्ली जाने वाली ट्रेन कितने बजे जायेगी" सुन कर बड़ा अजीब लगा की हिन्दी में ही बोल रहा है और कहता है इसको हिन्दी में बोलिए। मैंने उससे कहा तुम तो इसको पहले से ही हिन्दी में बोल रहे हो तो कहता है हिन्दी में इसको ऐसा बोलेंगे "श्रीमान दिल्ली जाने वाली लोहपथगामिनी कितने समय पर प्रस्थान करेगी। मैंने उस से कहा ठीक है ये भी हिन्दी है और इसमें लोहपथगामिनी के स्थान पर अगर ट्रेन ही बोलोगे तो ज्यादा उचित रहेगा क्युकी ऐसा शब्द कुछ लोग जबरदस्ती बनाते हैं मजे लेने के लिये जैसे धुक-धुक वाहिनी और भी इस तरह के शब्द अपनी ही भाषा का मजाक उडाने के लिये लोग प्रयोग करते हैं और वास्तव में वो अपना मजाक स्वयं ही उड़ारे होते हैं , कहता है फ़िर ये हिन्दी कहाँ रहेगी। मैंने कहा अरे भले आदमी दुनिया की हर भाषा दूसरी भाषाओं से शब्द लेती रहती है इसका मतलब ये नही है की वो भाषा ही बदल गई अगर तुम्हे पता हो इंगलिश और अन्य भाषाओं में भी में कितने ही सैंकडो शब्द हिन्दी और अन्य भाषाओं से लिये गए हैं किंतु जब तुम ये क्यों नही बोलते की ये इंग्लिश नहीं है उदाहरण के तौर पर अगर मैं ये कहूं he is a tech guru. तो अब तुम इसको क्या बोलोगे गुरु शब्द तो हिन्दी का है जबकि अमेरिका मैं तो इसको बहुत प्रयोग में लाते हैं और ये सिर्फ़ एक शब्द नही ऐसे पता नही कितने शब्द हिन्दी(संस्कृत) , स्पेनिश , फ्रेंच, जर्मन और भी बहुत सी भाषाओं के शब्द तुम्हे इंग्लिश में आराम से मिल जायेंगे पर तुम उसको हमेशा इंग्लिश ही बोलोगे और वो है भी इंग्लिश। अब इसी तरह अगर हिन्दी में हम कुछ इंग्लिश के या फारसी के शब्द मिला कर बोल देते हैं तो वो हिन्दी ही रहेगी क्यूंकि ये शब्द हिन्दी ने ग्रहण कर लिये हैं हाँ लकिन अगर हम जानभूझ कर इंग्लिश या फारसी के शब्द अधिक से अधिक प्रयोग करते हैं तो वो हमारी नासमझगी गुलामी की मानसिकता और अच्छी हिन्दी नही होगी लेकिन वो होगी हिन्दी ही क्युकी भाषा व्याकरण से होती है न की सिर्फ़ संज्ञा से और तुम जब भी वाक्य की सरचना हिन्दी की ही व्याकरण से कर रहे हो। तो मेरे भाई अगर मैं ये कहता हूँ "दिल्ली जाने वाली ट्रेन कितने बजे\टाइम\वक्त या समय पर जायेगी" तो ये हिन्दी ही है। दोस्तो आप लोगो की क्या राय है इस बरे में कृपया कुछ प्रतिक्रिया दीजिये।
धन्यवाद एवं शुभ कामनाओं सहित,
आपका मित्र सौरभ आत्रेय
बुधवार, 9 अप्रैल 2008
सत्यार्थ-प्रकाश
शुभकामनाओ सहित
आपका मित्र सौरभ
रविवार, 6 अप्रैल 2008
प्रथम संदेश
शुभ कामनाओं सहित,
आपका मित्र
सौरभ त्यागी