गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

क्या भारत वर्ष या आर्याव्रत हमारा देश नहीं है (क्या हम विदेशी हैं )

भारत वर्ष की लगातार अत्यन्त त्रुटिपूर्ण शिक्षा का ही ये कमाल है की हम अपने देश में ही अपने आप को विदेशी आक्रमणकारी की संज्ञा से संबोधित करते हैं जिस के कारण बहुत सारे लोग (और इसमें लगातार वृद्धि भी हो रही है) अपने को आर्य और कुछ को द्रविड़ बताते हैं और जिसके कारण उनके ह्रदय एक नही हो पाते हैं और वो अपने आप को अलग संस्कृति का मानते हैं ये बड़ी ही विकट और हास्यास्पद बात है कि काफी सारे दक्षिण भारतीय लोग अब भी उत्तरी भारतीय लोगो को आक्रमणकारी और अलग संस्कृति का समझते हैं और इनकी इस समझ में बहुत सारे नेता उत्तरी भारतीय लोग भी बढ़-चढ़ कर साथ देते हैं जिससे देश विखंडन कि और बढ़ रहा है। करीब १५० साल पहले ब्रिटिश शाशकों द्वारा बड़ी चालाकी से भारतीय शिक्षा में ये लिखवा दिया गया कि उत्तरी भारतीय लोग यहाँ के नही हैं मध्य एशिया से यहाँ पर आए हैं और उन्होंने यहाँ पर यहाँ के वास्तविक लोगो पर कब्जा कर लिया बाद में उनका साथ हमारे महा बेवकूफ और चरित्रहीन नेता जवाहर लाल नेहरू ने एक तर्कहीन महाबकवास किताब उन्ही की नक़ल से डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया लिख कर महांचापलूसी और बुद्दिहीनता का परिचय दिया। इस बात का आज कि पीडी पर बड़ा ही कुप्रभाव पड़ा है। उनके पास कोई भी प्रमाण नही है कि आर्य बाहर से आए हैं सिर्फ़ बेसिर-पैर कि बातों के अलावा। जैसे NCERT की पुस्तकों में लिखा है कि “आर्य पहले कहीं साउथ रूस से मध्य एशिया के मध्य में कही रहते थे क्युकी कुछ जानवरों के नाम जैसे dog, horse, goat (कुत्ता,घोडा , बकरी) आदि और कुछ पोधो के नाम पाइन, मेपल आदि जैसे शब्द सभी इंडो- यूरोपियन भाषाओं में एक जैसे हैं इससे ये पता लगता है कि आर्य नदियों और जंगलों से परिचित थे।“ सब से पहले तो ये इंडो-यूरोपियन भाषा का कोई अस्तित्व नहीं है और विश्व की सभी भाषाओं में तुम्हे संस्कृत के शब्द मिल जायेंगे सभी भाषाओं के आदि में संस्कृत है जरा शोध करके तो देखो। खैर ये एकदम से बेसिर-पैर और अतार्किक बात है जो NCERT कि पुस्तकों में लिखी है भाषाई शब्द और यहाँ तक कि व्याकरण से इंग्लिश, ग्रीक, इटालिक अरेबिक , हिन्दी(संस्कृत) और विश्व की कई अन्य भाषाओं में एक जैसे शब्द पाए जाते हैं किंतु इससे ये तो सिद्ध नही होता और ना ही कोई प्रमाण मिलता कि इंग्लिशमैन,इटालियन , अरब और भारतीयों के एक ही पूर्वज थे ये तो बिल्कुल बेवकूफी वाली बात है। कुछ भारतीयों को भारतीयों द्वारा लिखित या हिन्दी में लिखित बातों पर शायद विश्वास नहीं होगा तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की विंसेंट ऐ स्मिथ द्वारा लिखित पुस्तक "हिस्टरी ऑफ़ इंडिया" में साफ शब्दों में लिखा है "भाषा कोई आधार नही है एक जातीय होने के लिये"। NCERT की पुस्तक में ये भी लिखा है “आर्य १५०० वर्ष ईसा पूर्व से कुछ पहले भारत में आये जबकि कोई भी ऐसा पुरातात्विक विश्लेषण इसको सिद्ध नही कर सकता और ना ही तुम्हे कहीं मिलेगा” अगर मिलता तो हमें भी बताओ जरा।

अब जरा एक बात अपनी बुद्दी से और अनुसंधान करके सोच कर बताओ जो सब कुछ वेदों में लिखा है और जो भी कुछ हमारे रीती रिवाज़ हैं और जो हमारी जीवन दर्शन का सिद्धांत है वो इस विश्व में कही भी नही है अगर आर्य बाहर से मध्य से आते तो उनके वहाँ भी तो तो कुछ प्रमाण होने चाहिए जबकि हमारी संस्कृति और उनमें धरती-आसमान का अन्तर दिखाई देता है। शायद मेरी बात को आप में से कुछ लोग स्वीकार नही करेंगे तो मैं यहाँ उनके लिये कुछ ब्रिटेनिका एनसाईक्लोपीडिया से लिये गए बातो को लिख रहा हूँ ।
१) आर्यों में कोई गुलाम बनाने का कोई रिवाज़ नही था।
समीक्षा - जबकि मध्य एशिया अरब देशो में ये रिवाज़ बहुत रहा है।
२) आर्य प्रारम्भ से ही कृषि करके शाकाहार भोजन ग्रहण करते आ रहें है।
समीक्षा - मध्य एशिया में मासांहार का बहुत सेवन होता है जबकि भारत में अधिकतम सभी आर्य या हिंदू लोग शाकाहारी हैं३) आर्यों ने किसी देश पर आक्रमण नहीं किया
समीक्षा- अधिकतम अपनी सुरक्षा के लिये किया है या फ़िर अधर्मियो और राक्षसों (बुरे लोगो) का संहार करने के लिये और लोगो को अन्याय से बचाने के लिये और शिक्षित करने के लिये किया है। इतिहास साक्षी है अरब देशो ने कितने आक्रमण और लौट-खसोट अकारण ही मचाई है।
४) आर्यों में कभी परदा प्रथा नही रही बल्कि वैदिक काल में स्त्रियाँ स्नातक और भी पढी लिखी होती थी उनका आर्य समाज में अपना काफी आदर्श और उच् स्थान था ( मुगलों के आक्रमण के साथ भारत के काले युग में इसका प्रसार हुआ था) समीक्षा- जबकि उस समय मध्य एशिया या विश्व के किसी भी देश में स्त्रियों को इतना सम्मान प्राप्त नही था।
५)आर्य लोग शवो का दाह संस्कार या जलाते हैं जबकि विश्व में और बाकी सभी और तरीका अपनाते हैं।
समीक्षा - ना की केवल मध्य एशिया में वरन पूरे विश्व में भारतीयों के अलावा आज भी शवो को जलाया नही जाता।
६) आर्यों की भाषा लिपि बाएं से दायें की ओर है।
समीक्षा - जबकि मध्य एशिया और इरानियो की लिपि दायें से बाईं ओरहै
७)आर्यों के अपने लोकतांत्रिक गाँव होते थे कोई राजा मध्य एशिया या मंगोलियो की तरह से नही होता था।
समीक्षा - मध्य एशिया में उस समय इन सब बातो का पता या अनुमान भी नही था
८)आर्यों का कोई अपना संकीर्ण सिद्दांत या कानून नही था वरन उनका एक वैश्विक अध्यात्मिक सिद्दांत रहा है जैसे की अहिंसा, सम्पूर्ण विश्व को परिवार की तरह मानना। समीक्षा -मध्य एशिया या शेष विश्व में ऐसा कोई सिद्दांत या अवधारणा नही है।
९)वैदिक या सनातन धर्म को कोई प्रवर्तक या बनाने वाला नहीं है जैसे की मोहम्मद मुस्लिमों का, अब्राहम ज्युष का या क्राईस्ट क्रिश्चियन का और भी सब इसी तरीको से।
समीक्षा - मध्य एशिया या शेष विश्व में भारतीयों या हिन्दुओं के अतिरिक्त सभी के अपने मत हैं और सभी में और मतों की बुराई और अपनी तारीफ़ लिखी गई है जबकि हिन्दुओं या आर्यों ने हमेशा समस्त विश्व को साथ लेकर चलने की बात कही गई है।
१०) वेदों में या किसी भी संस्कृत साहित्य में कहीं भी ये वर्णन नहीं है की आर्य जाती सूचक शब्द है और कोई मध्य एशिया से आक्रमणकारी यहाँ आ कर बसे हैं जिन्होंने वेदों की रचना की है।
समीक्षा -जबकि इस बात को विश्व में सभी सर्वसहमति से स्वीकारते हैं की वेद विश्व की सबसे पुराने ग्रन्थ हैंऔर किसी भी भारतीय उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत या अन्य किसी में भी कहीं भी ये एक शब्द भी नही मिलता की आर्य बाहर से आए हैं जबकि आर्य कोई जातिसूचक शब्द ना हो कर के उसका अर्थ श्रेष्ट है।
अब विचार करने योग्य ये है ये सभी बातें भारतीयों या हिन्दुओं के अलावा विश्व में कहीं और क्यों नही पाई जाती यदि हम आक्रमणकारी थे तो हमारे सिद्दांत या रीती रिवाज़, समाज या अन्य धार्मिक क्रिया-कलाप किसी और विश्व की सभ्यता में क्यों नही पाए जाते अगर वास्तव में हम आक्रमणकारी हैं तो हमारी मूल स्थान कहीं तो होगा जैसे की अधिकतर लोगो का मानना मध्य एशिया हमारा मूल स्थान है उनमें क्या एक भी गुण हम आर्यों के सिद्दान्तो या जीवनदर्शन से मिलता है बल्कि मूल स्थान पर ये गुण अधिक पाये जाने चाहिए थे। हम इस विश्व में शेष विश्व से अपनी एक अलग पहचान रखते हैं और ऐसे हजारों तथ्य हैं जो इस बात को सिद्ध करते हैं हम भारतीय मानव के जन्म काल से भारतवासी हैं। मेरे विचार से इससे बड़ी हास्यास्पद और विकट समस्या भारतीयों के लिये हो नहीं सकती अगर वो अपने को इस देश का मूल निवासी नही मानते। क्युकी इससे राष्ट्रभक्ति और स्वाभिमान पर सीधा आघात होता है जैसा की ब्रिटिश चाहते ही थे और इनके उद्देश्य को पूर्ण करने में पिछले १५० सालो से हमारे नेताओं ने जोकि अधिकतर भारतीयों की खाल में वेदेशी घुसे हुए हैं ने कोई कमी नही छोडी है जिससे आजकल की पीडी अपने राष्ट्र और संस्कृति से भी कटने लगी है। खैर देखते और आशा भी करते है भारत अपने इस काले युग से बाहर निकल कर फ़िर से अपने पैरो पर खड़ा हो कर के चलेगा किसी दिन।
धन्यवाद एवं शुभ कामनाओं सहित,
आपका मित्र सौरभ आत्रेय

मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

क्या हम हिन्दी नहीं बोलते

मित्रो एक बार की बात है मेरी एक भारतीय से ये बैहस हुई कि भारतीय हिन्दी नहीं बोलते अब आप लोगो को सुन कर मेरा मतलब पढ़ कर बड़ा अजीब लगा होगा पर ऐसा ही कि कुछ मूर्ख लोग समझते हैं। अब उनका तर्क सुनिए उसने मुझ से हिन्दी में ही बोल कर कहा की आप इसको हिन्दी में बोलिए "भाईसाब दिल्ली जाने वाली ट्रेन कितने बजे जायेगी" सुन कर बड़ा अजीब लगा की हिन्दी में ही बोल रहा है और कहता है इसको हिन्दी में बोलिए। मैंने उससे कहा तुम तो इसको पहले से ही हिन्दी में बोल रहे हो तो कहता है हिन्दी में इसको ऐसा बोलेंगे "श्रीमान दिल्ली जाने वाली लोहपथगामिनी कितने समय पर प्रस्थान करेगी। मैंने उस से कहा ठीक है ये भी हिन्दी है और इसमें लोहपथगामिनी के स्थान पर अगर ट्रेन ही बोलोगे तो ज्यादा उचित रहेगा क्युकी ऐसा शब्द कुछ लोग जबरदस्ती बनाते हैं मजे लेने के लिये जैसे धुक-धुक वाहिनी और भी इस तरह के शब्द अपनी ही भाषा का मजाक उडाने के लिये लोग प्रयोग करते हैं और वास्तव में वो अपना मजाक स्वयं ही उड़ारे होते हैं , कहता है फ़िर ये हिन्दी कहाँ रहेगी। मैंने कहा अरे भले आदमी दुनिया की हर भाषा दूसरी भाषाओं से शब्द लेती रहती है इसका मतलब ये नही है की वो भाषा ही बदल गई अगर तुम्हे पता हो इंगलिश और अन्य भाषाओं में भी में कितने ही सैंकडो शब्द हिन्दी और अन्य भाषाओं से लिये गए हैं किंतु जब तुम ये क्यों नही बोलते की ये इंग्लिश नहीं है उदाहरण के तौर पर अगर मैं ये कहूं he is a tech guru. तो अब तुम इसको क्या बोलोगे गुरु शब्द तो हिन्दी का है जबकि अमेरिका मैं तो इसको बहुत प्रयोग में लाते हैं और ये सिर्फ़ एक शब्द नही ऐसे पता नही कितने शब्द हिन्दी(संस्कृत) , स्पेनिश , फ्रेंच, जर्मन और भी बहुत सी भाषाओं के शब्द तुम्हे इंग्लिश में आराम से मिल जायेंगे पर तुम उसको हमेशा इंग्लिश ही बोलोगे और वो है भी इंग्लिश। अब इसी तरह अगर हिन्दी में हम कुछ इंग्लिश के या फारसी के शब्द मिला कर बोल देते हैं तो वो हिन्दी ही रहेगी क्यूंकि ये शब्द हिन्दी ने ग्रहण कर लिये हैं हाँ लकिन अगर हम जानभूझ कर इंग्लिश या फारसी के शब्द अधिक से अधिक प्रयोग करते हैं तो वो हमारी नासमझगी गुलामी की मानसिकता और अच्छी हिन्दी नही होगी लेकिन वो होगी हिन्दी ही क्युकी भाषा व्याकरण से होती है न की सिर्फ़ संज्ञा से और तुम जब भी वाक्य की सरचना हिन्दी की ही व्याकरण से कर रहे हो। तो मेरे भाई अगर मैं ये कहता हूँ "दिल्ली जाने वाली ट्रेन कितने बजे\टाइम\वक्त या समय पर जायेगी" तो ये हिन्दी ही है। दोस्तो आप लोगो की क्या राय है इस बरे में कृपया कुछ प्रतिक्रिया दीजिये।

धन्यवाद एवं शुभ कामनाओं सहित,

आपका मित्र सौरभ आत्रेय

बुधवार, 9 अप्रैल 2008

सत्यार्थ-प्रकाश

दोस्तो अभी हाल ही में मैंने दयानंद सरस्वती जी कृत सत्यार्थ प्रकाश पढ़ी तो मेरी आँखे खुली की क्यों पिछले १००० वर्षो से दुनिया ने हम पर इतने आक्रमण किए और बहुत सारे उनमें निष्फल और काफी सफल भी हुए। दुर्भाग्य से ज्यादातर हम केवल सफल आक्रमणकारियों से परिचित हैं और उनके गुणगान में बहुत कुछ अपनी किताबो में पढ़ा करते हैं लकिन बहुत से लोगो को ये मालूम नही होगा कि उनसे भी ज्यादा आक्रमणकारीनिष्फल हुए थे। खैर मैं कुछ और बताने के लिये लिखने बैठा हूँ और कहीं विषय से भटक ना जाऊं वापिस वहीं पर आता हूँ क्यों वो सफल हुए उसका कारण है हमारा अपनी मूल धारा से अलग हट कर सैंकडो धाराओं में बट जाना। अनादिकाल में इश्वर ने स्रष्टि रची और उसके पश्चात न जाने कब मनुष्य की सरंचना की और उनमें से कुछ के अंदर वेदों के स्वरूप में ज्ञान प्रकाशित और परिभाषित किया। अब बहुत से लोगो को ये बात बिल्कुल नही पची होगी किंतु ये परमसत्य है और साक्षात् है अगर विश्वास नही होता तो पहले वेदों को पढो तब विचार विमर्श करो और ये बात अवश्य याद रखो की वेद अपने यथासंभव मूल स्वरूप में होने चाहियें। मैं थोड़ा सा आपको इसको खोल कर समझाता हूँ। मैं भारतीयों का मूल धारा से हटकर विभाजित होने की बात कर रहा था तो वो ये है की काफी लंबे समय से काफी सारे धुर्तो ने वेदों की बुराई करके या ग़लत कामो को ये कहकर के कि ये वेदों में लिखा है या मुर्खता से कुछ मंत्रों और शब्दों का ग़लत मतलब लगा करके लोगो को बहकाया है और कुछ अपने पास से मन-घढ कर के ये कहा कि फलाने ऋषि ने लिखा है। इससे लोग उनके झासे में आकर के तरह-तरह के सैंकडो सम्प्रदायों में बट गए जैसे कि शैव, वैष्णव, जैन ,गोसाई , बोद्ध,निकृष्ट वाम-मार्गी, ब्रह्म समाज , प्रार्थना समाज और भी पता नहीं बहुत सारे हैं (इसाई, मुस्लिम की तो यहाँ पर चर्चा करना ही व्यर्थ है और ये सभी मत तो भारत वर्ष में बाहर से आक्रमणकारियों के कारण आए हैं।) और सब के अपने-अपने मत हैं और सब कहते हैं कि हमारे शिष्य बन जाओ अगर अपना भला चाहते हो। वेदानुसार जोकि परम सत्य है इश्वर निराकार ब्रह्म सचिदानान्द्स्वरूप नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभाव अज निरंजन निर्विकार सर्वान्तर्यामिन सर्वाधार जगत्पते सकलजगदुत्पादक अनादे विश्वम्भर सर्वव्यापिन करुणामृतवारिधे अनादी अनंत है और जिसके हम वैभव को अपने अन्दर आत्मसात करके परमानन्द का अनुभव करते हुए दुखो से दूर जीवन के भव सागर को तर जाते हैं। जिसकी शब्दों से व्याखा भी नहीं की जा सकती सिर्फ़ उसके थोड़े से वैभव को दर्शा सकते हैं उसको अनुभव किया जा सकता है केवल प्राणायाम, ध्यान और समाधि के माध्यम से उसमें सब व्याप्त हैं वह अनादी है अनंत है। शिव, विष्णु , ब्रह्म, महेश और भी काफ़ी सारे नाम इश्वर के वेदों में वर्णित हैं पर ये सब इश्वर की व्याखा और उसके वैभव को दर्शाने के लिये व्यक्त किए गए हैं ना कि ये कोई इंसान और मनुष्याकृति के नाम हैं। ये सब संस्कृत की अपनी-अपनी धातुओं से अलग-अलग अर्थ रखते हैं। जैसे उदाहरण के तौर पर इश्वर शिव है क्योंकि वो ही स्रष्टि का सहारंक है इश्वर इस स्रष्टि का पालनकर्ता है इसलिए उसको विष्णु बोला गया है उत्पत्ति कारक है इसलिए ब्रह्म बोला गया है विद्या और ज्ञान का देने वाला है इसलिए सरस्वती है इसी प्रकार तरह-तरह से उसको अलग-अलग नामो से संबोधित किया है और उसमें न केवल समस्त पृथ्वी वरन समस्त ब्रह्माण्ड के सुख की बात लिखी गई हैं अध्यात्म, पदार्थ विज्ञान, वनस्पति, जीव और सभी प्रकार के विज्ञानों का उसमे विस्तार से वर्णन है कोई भी विज्ञान वेदों से अछूता नही है। वेदों के आगे समस्त आधुनिक विज्ञान न्यून स्वरूप हैं। ये कोई बेवकूफी भरी रिलिजिअस या मजहबी पुस्तके नही हैं ये ऐसे ज्ञान के भंडार हैं जो समस्त मानव कल्याण और ब्रह्माण्ड की बातें करते हैं इनमे कोई भी संकीर्णता भरी बातें नही हैं ये सनातन धर्म जो मानव के साथ अनादी काल से चला आ रहा है उसको वर्णित करते हैं। आज दुनिया वेदविरुद्ध हो जाने के कारण ही आपस में लड़ रही है क्योंकि उन्हें मानवता के मूलभूत तत्व आदर-सत्कार, जीवन-दर्शन, समाज-दर्शन, उचित भोजन, परिवार, ब्रह्मचर्य आदि ... जैसे मनुष्य जीवन के आवश्यक तत्वों का बोध भी नही है। भारत कि जनता पिछले १००० वर्षो से वेद विरुद्ध हो जाने के कारण ही खण्डित हो कर के अधर्मियो से हार का दंश झेल रही है। गीता में वेदों के मंत्रों की ही श्रीकृष्ण ने व्याखा कि है और उसमें गहन अध्यात्म विज्ञान के साथ-साथ अधर्मियो का सर्वनाश करने के लिये बोला है जिसका अब कोई पालन नही करता है। बल्कि उसका भी ग़लत अर्थ करके लोगो को समझाया जाता है जैसे गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को अधर्मियो को सर्वनाश करने के लिये कहते हैं चाहे वो तुमाहरे सगे-सम्बन्धी ही क्यों न हो अगर वो अधर्म का साथ देते हैं तो उनका साथ ना देकर के उनके विरुद्ध युद्ध करो आजकल के गुरु ये कहते हैं अर्जुन तेरा मन है और कृष्ण तेरा विवेक और इस विवेक से अपने अंदर के अधर्म को नष्ट करना है ओर कृष्ण अर्जुन इसके अलावा कुछ भी नही हैं ऐसे उपदेश सुन कर कुछ लोग कायरता का बर्ताव करने लगते हैं जबकि वेदों में क्षत्रियों को धर्म और मानव कल्याण के लिये अधर्मियो का सर्वनाश करने के लिये बोला गया है अब इस बात को समझाने के लिये अपने इतिहास को झूठा क्यो साबित करने पर तुले हैं। हम कब कहते हैं की अन्दर का अधर्म नष्ट नही होना चाहिए समझाने के तौर पर इस तरह के गुरु इतिहास को क्यों नकारते हैं जबकि श्रीकृष्ण श्रीराम अर्जुन आदि सभी हम आर्यों के गौरवशाली इतिहास हैं इस काम के लिये तो हमारी सरकार ही काफ़ी है अब ये ढोंगी भी करने लगे एसे लोगो ने लोगो को कायर बनाने का ठेका लिया हुआ है। मैं दयानंद सरस्वती की १-२ बातो को छोड़ कर अधिकतर में एकमत हूँ। मैंने इस किताब के साथ-२ शंकराचार्य कृत विवेकचूडामणि भी पढी है वो भी वेदों की ही व्याखा करते हैं लकिन शंकराचार्य अद्वैत वादी हैं और दयानंद सरस्वती द्वैत वाद के प्रबल समर्थक हैं। आधुनिक काल में इन दोनों ने ही देश की काफी जनता को ढोंगियों से बचाने का उत्तम कार्य किया है। ये एक बहुत दीर्घ और गहन विषय है अभी के लिये इतना ही काफ़ी है आगे भविष्य में और सभी विषयों के बीच-बीच में आप लोगो को इनके और वेदों के महान विज्ञान विचारों से परिचित कराया करूंगा।
शुभकामनाओ सहित
आपका मित्र सौरभ

रविवार, 6 अप्रैल 2008

प्रथम संदेश

मैंने अभी हाल ही में इस बात पर ध्यान दिया है कि हिन्दी की साइट्स और ब्लोग्स दिन प्रति दिन प्रचलित होती जा रही हैं और ये देखकर काफी अच्छा अनुभव हुआ फ़िर मैंने भी सोचा मैं भी एक अपने देश की भाषा में ब्लॉग बनाऊं। मैं एक सीनियर प्रोग्रामर हूँ और आज कल यू एस फ्लोरिडा में कार्यरत हूँ अगर किसी भाई को कोई टेक्निकल, सोफ्टवेयर संबंधित या कोई वेब-डिजाईन संबंधित समस्या हो तो आप मुझ से सम्पर्क कर सकते हैं और मुझे अच्छा लगेगा कि मैं भी देश की भाषा के प्रसार में योगदान कर रहा हूँ। मेरा प्रयास रहेगा की प्रत्येक सप्ताहंत पर या जब भी मेरे को समय मिलेगा मैं आपके लिये सभी विषयों पर आपके समक्ष अपने विचार प्रकाशित किया करूँगा। ये मेरा पहला संदेश है तो मैं यहाँ ज्यादा कुछ ना लिखते हुए यहीं समाप्त करता हूँ और भविष्य में कुछ अच्छे ज्ञानवर्धक संदेशो के साथ आऊँगा।
शुभ कामनाओं सहित,
आपका मित्र
सौरभ त्यागी